स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

दीपावली की शुभ कामनाएँ




दीपावली प्रकाश का पर्व है .  दीपावली का शाब्दिक अर्थ दीपों की पंक्ति से है .  इस पर्व को मनाये जाने के पीछे मान्यता यह रही है कि इसी दिन  भगवान राम चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या वापस आये थे . उनके वापस आने की ख़ुशी में अयोध्या वासियों ने घी के दिए जलाये . तब से कार्तिक अमावस्या  की काली घनी रात हमेशा रोशनी से जगमगाई रहती है. यह पर्व  बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है या हम कह सकते है कि असत्य  पर सत्य की विजय का भी प्रतीक है.हमें भी इस पर्व के मूल भाव को समझकर अपने अन्दर के अंधकार को मिटाकर प्रकाश को अपनानना चाहिए .  

हमारे यहाँ लोग दीपावली के दिन घर घर जा कर अपने से बड़ो का आशीर्वाद जरुर लेते हैं .मैं भी अपने सभी ब्लॉगर साथियों से अनुरोध करती हूँ कि वे भी अपने से बड़ो का आशीर्वाद अवश्य ले साथ ही मेरे जैसे ब्लॉग परिवार में आए  नए  सदस्यों को अपना आशीष देकर यूँ ही उत्साह वर्धन करते रहें.  

आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ. 


शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

फटाफट निपटाओ

हमारा देश एक लोकतान्त्रिक देश है और हर किसी को अपने  विचारों  को व्यक्त करने की पूरी स्वंत्रता है . ठीक उसी तरह  यदि हम किसी के विचारों से सहमत नहीं  है तो हमें  विरोध करने की भी पूरी स्वंत्रता है . 



जी हाँ मैं प्रशांत भूषण के सम्बन्ध में ही बात कर रही हूँ . उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर जो बयान बनारस में दिया था , मैं उसके एक दम खिलाफ हूँ  लेकिन  उनके  इस बयान के विरोध में जो प्रतिक्रिया हुई  उसके समर्थन में  भी बिलकुल नहीं हूँ. 

आजकल का जमाना "फटाफट निपटाओ" पर केन्द्रित हो गया है. हम किसी समस्या का स्थायी निदान करना ही  नहीं चाहते हैं . हम तुरंत निदान चाहते है , भले ही समस्या  कुछ दिन के बाद फिर से क्यों न सामने आ जाये. यहाँ भी हाल कुछ ऐसा ही है . 

प्रशांत भूषण ने इस मुद्दे पर बयान देते समय सोचा ही नहीं कि मुद्दा कितना गंभीर और संवेदनशील है . वे भूल गए कि हमारे सैनिक वहां कितनी कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए सीमा की रक्षा कर रहे हैं . कई बार जनता की रक्षा करते हुए वे शहीद भी हो जाते हैं . पिछले वर्ष मुझे कश्मीर जाने का मौका मिला था और वहां मैंने मौसम की परवाह न करते हुए अपने वीर जवानों को काफी संघर्ष करते हुए नजदीक से देखा था साथ ही  यह भी  महसूस  किया था कि किस तरह जनता की रक्षा के लिए ये लोग हमेशा तत्पर रहते हैं .मुझे कश्मीरी जनता के  विचारों को भी जानने का मौका मिला और  ऐसा लगा कि वे लोग तरक्की की दिशा में थोड़े पीछे रह गए हैं . मुझे लगा कि उनकी उर्जा सकारात्मक दिशा में खर्च न होकर नकारात्मक दिशा में मोड़ दी जा रही हैं जो उनके भविष्य के लिए किसी तरह से  भी सही नहीं है.हम यह भी जानते हैं की कश्मीर से बहुत से लोगो का पलायन भी हो गया है. वहां के मंदिरों में जाने वाला कोई भी व्यक्ति स्थानीय नहीं होता है ,पर्यटक ही गाहे-बगाहे नज़र आ जाते हैं . आखिर क्यों .........?

इन परिस्थितियों के लिए कौन जिम्मेदार है ये कहना बड़ा कठिन है ...
मेरे विचार से हमें "कश्मीर हमारा  अभिन्न हिस्सा है " इतना कहना काफी नहीं होगा बल्कि कश्मीरी जनता से सीधे जुड़कर उनको विश्वास में लेना होगा. दिल्ली ,मुंबई ......जैसे बड़े बड़े शहरों में बैठकर हम वहां की जनता की भावनाओ और इच्छाओं को नहीं समझ सकते . कुछ ही दिन वहां बिताने के बाद मुझे ऐसा लगा कि वहां की जनता की  मानसिकता को पंगु बना दिया गया है और उनकी मानसिकता राजनीति  की बैसाखी के साथ ही चलती है. 

शांति पूर्ण विरोध करने के भी अनेक तरीके हो सकते है. आज के इस युग में संचार के अनेको माध्यम है जिसके द्वारा हम स्वन्त्रत  रूप से विरोध प्रकट कर सकते है, साथ ही  जिसका हम विरोध कर रहे है उस तक और आम जनता तक आसानी से अपनी बात पहुंचा भी सकते है . इस सन्दर्भ में मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है . एक बार एक व्यक्ति ने एक दुकान से इलेक्ट्रोनिक सामान ख़रीदा और घर पहुँचने पर उसे ख़राब देखकर वह दुकान वाले के पास वापस करने के लिए पहुँच गया.  दुकान वाले ने जब उस सामान को वापस लेने से मना कर दिया तो उस व्यक्ति ने  एक तरकीब निकाली .  उसने एक रिक्शा और माइक लेकर दूकान के आस-पास घूम -घूमकर लोगो के बीच अपनी इस  बात को  पहुँचाना शुरू कर दिया .. कुछ ही देर में दुकान का मालिक दौड़ते  हुए उसके पास पहुंचा और उसकी समस्या हल कर दी .यहाँ इस प्रसंग को लिखने का मेरा यही मकसद था कि आजकल  कई ऐसे प्रभावी तरीके हमारे आस पास होते है जिससे हम सामने वाले को बिना किसी हिंसा के मुह तोड़ जवाब दे सकते है. हम अपने विरोधी को ठोकपीट कर अपने विचारों से नहीं जोड़  सकते है , असली बहादुरी तो विरोधी के विचारों  को बदलकर अपने विचारों से जोड़ लेने में है . आपको क्या लगता है....? 


अन्ना टीम को इस समय अर्जुन की तरह एकाग्रचित्त होकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, साथी ही प्रशांत भूषण को इस समय अपनी गलती को समझ कर देशवासियों से माफ़ी मांगनी चाहिए और इस बात को यहीं ख़तम करना चाहिए. अन्ना टीम सदस्यों को एकजुट होकर इन परिस्थितियों से बाहर निकलना होगा क्योंकि उनकी जरा सी  चूक के दूरगामी परिणाम हो सकते है.